कर्ण पिशाचिनी एक अत्यंत गोपनीय तांत्रिक साधना है, जिसमें साधक पिशाचिनी आत्मा को मंत्र द्वारा वश में कर, कान में उत्तर प्राप्त करता है। यह साधना केवल सिद्ध गुरुओं के निर्देशन में ही की जा सकती है। स्वयं प्रयास करने से गंभीर मानसिक और आध्यात्मिक दुष्परिणाम संभव हैं।
साधना का रहस्य
कर्ण पिशाचिनी साधना का तात्पर्य है—ऐसी तांत्रिक क्रिया, जिसमें एक पारलौकिक शक्ति (पिशाचिनी) साधक के कान में भविष्य, वर्तमान या अतीत की जानकारी देती है।
- इस साधना को कोई व्यक्ति अकेले नहीं कर सकता।
- इसके लिए सिद्ध गुरु का मार्गदर्शन अनिवार्य होता है।
- साधना पूर्ण होने पर साधक, किसी के भी जीवन की गूढ़ जानकारी जान सकता है।
पिशाचिनी कैसे करती है संवाद?
मंत्र के प्रभाव से एक आत्मा वश में आती है, जो कर्ण (कान) में उत्तर देती है। यह आत्मा कोई सामान्य नहीं, बल्कि एक ऐसी आत्मा होती है जिसे मृत्यु के बाद मुक्ति नहीं मिली, और उसमें विशेष पारलौकिक क्षमताएँ विकसित हो जाती हैं।
पहला प्रयोग – कर्ण पिशाचिनी सिद्धि का प्रारंभिक मार्ग
अवधि: 11 दिन
समय: दिन-रात उचित चौघड़िया में
विधि:
- काँसे की थाली में सिंदूर से त्रिशूल बनाएं।
- त्रिशूल का दिए गए मंत्र से पूजन करें।
- गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
- प्रति सत्र: 1100 बार मंत्र जाप करें।
- रात्रि में भी यही प्रक्रिया दोहराएं। घी और तेल दोनों दीपक जलाएं।
- नियमपूर्वक 11 दिन यह प्रयोग करें।
फल:
11वें दिन के बाद, जब भी साधक किसी प्रश्न का स्मरण करता है, कर्ण पिशाचिनी कान में उत्तर देती है।
सावधानियाँ (साधनाकाल के नियम)
- एक समय भोजन करें।
- काले वस्त्र पहनें।
- स्त्री से वार्तालाप वर्जित है।
- मन, कर्म, वचन की शुद्धता बनाए रखें।
मंत्र:
।।ॐ नम: कर्णपिशाचिनी अमोघ सत्यवादिनि मम कर्णे अवतरावतर अतीता नागतवर्त मानानि दर्शय दर्शय मम भविष्य कथय-कथय ह्यीं कर्ण पिशाचिनी स्वहा।।
गंभीर चेतावनी
- यह साधना अत्यंत संवेदनशील है।
- इसे अज्ञानतावश कभी न आजमाएँ।
- यह केवल सिद्ध तांत्रिकों और गुरुजनों के निर्देशन में ही करें।
- साधना की छोटी सी चूक भी मानसिक, आध्यात्मिक और शारीरिक संकट ला सकती है।