रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र: भोलेनाथ को प्रसन्न करने वाला महामंत्र, दिलाएगा अपार धन-संपत्ति और विजय

दशानन रावण की रचना से शिव की कृपा: शत्रु नाश, युद्ध विजय और अचल संपदा का स्वामी देहरादून, 3 नवंबर 2025: पौराणिक कथाओं में महाज्ञानी और महापंडित रावण को भगवान शिव का परम भक्त माना जाता है। लंका का राजा रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना कर भोलेनाथ को प्रसन्न किया और उनकी कृपा से अपार सिद्धियां प्राप्त कीं। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने वाला जातक शिव की विशेष अनुकंपा का पात्र बनता है, उसका जीवन सुख, संपत्ति, धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाता है। स्तोत्र में सायंकाल भगवान शिव के त्रिपुर सुंदरी के साथ रत्न सिंहासन पर तांडव नृत्य की मनोरम स्थिति का वर्णन है। रावण की यह रचना न केवल आध्यात्मिक उन्नति बल्कि भौतिक समृद्धि का भी माध्यम बनती है। शिव तांडव स्तोत्र की महिमा: सायंकाल तांडव का जीवंत चित्रण रावण की भक्ति से प्राप्त सिद्धियां रावण ने इस स्तोत्र से शिव को साधा और शत्रुओं का नाश, युद्धों में विजय तथा अचल संपदा प्राप्त की। प्रदोष काल में पूजा के बाद भाव-भक्ति से पाठ करने पर शिव शंकर लक्ष्मी, सुख, संपत्ति और अपार धन प्रदान करते हैं। स्तोत्र की महिमा निराली है, जिसका कोई पार नहीं पा सका। नियमित जाप से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और विजय प्राप्त होती है। पूर्ण शिव तांडव स्तोत्र: संस्कृत में मूल पाठ जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌। डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥   जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी । विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि । धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥   धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे । कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥   जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा- कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे । मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥   सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर- प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः । भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥   ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा- निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ । सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥   कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल- द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके । धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक- प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥   नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर- त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः । निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥   प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा- विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌ स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥   अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी- रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ । स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥   जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर- द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्- धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल- ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥   दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो- र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः । तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥   कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌। विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌कदा सुखी भवाम्यहम्‌॥13॥   निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका- निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः । तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥   प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना । विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥   इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌। हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥   पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे । तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥ फल श्रुति: प्रदोष काल में पाठ से अपार लाभ विजय, सुख-संपत्ति और धन की प्राप्ति प्रदोषकाल में पूजा करके रावण कृत शिव ताण्डव स्तोत्र। जो पढ़ता है भाव भक्ति से, वह होता विजयी सर्वत्र।। शिव शंकर शुभ लक्ष्मी देते सुख सम्पति, धन, अपरम्पार। महिमा शिव की बड़ी निराली, नहीं किसी ने पाया पार।।

Read More

श्री नारायणाक्षी साधना: जीवन की सम्पूर्ण सकारात्मकता का मार्ग

“श्री नारायणाक्षी साधना” एक दिव्य, प्रभावशाली और दुर्लभ साधना है, जिसे एक बार सिद्ध कर लेने से व्यक्ति अपने समस्त जीवन कष्टों, रोगों, शत्रुओं, मानसिक विकारों से मुक्ति पाकर, ऐश्वर्य, यश, स्वास्थ्य और आत्मिक चेतना की ऊँचाईयों को प्राप्त कर सकता है। यह साधना प्राचीन ऋषियों, पांडवों और सिद्ध लामाओं द्वारा सिद्ध की गई है और आज भी अपनी सिद्धि के लिए प्रसिद्ध है।

Read More