वेदिक ज्योतिष में बृहस्पति (गुरु) के 12 भावों में प्रभाव

वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति (गुरु) को ज्ञान, सौभाग्य और अध्यात्म का प्रतीक माना जाता है। इसकी कुंडली में 12 भावों में स्थिति जीवन के विभिन्न क्षेत्रों पर प्रभाव डालती है, जैसे स्वास्थ्य, विवाह, शिक्षा, करियर आदि। उदाहरण के लिए, पहले भाव में गुरु शुभ स्वास्थ्य और सम्मान देता है, जबकि दसवें भाव में यह करियर में सफलता लाता है। केपी ज्योतिष के अनुसार, गुरु की महादशा, अंतरदशा और उप-अंतरदशा में वह उन भावों के फल देता है जिनका वह कारक होता है। यह फल कुंडली की स्थिति के अनुसार व्यक्ति विशेष के जीवन में घटित होते हैं।

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मन्त्र: ध्वनि, शब्द, और कम्पन शक्ति

मन्त्र एक विशेष क्रम में निहित ध्वनियों का समूह है, जो शारीरिक और मानसिक लाभ प्रदान करता है। मन्त्र जपने से श्वास नियंत्रित होता है, जिससे रक्तचाप कम करने में मदद मिलती है। ये प्राचीन ध्वनियाँ व्यक्ति की कम्पन ऊर्जा को बदलती हैं, जैसे कि “ओम नमः शिवाय” का जप मानसिक शांति और एकाग्रता बढ़ाता है। मन्त्र ध्यान की प्रक्रिया को आसान बनाते हैं और छोटे खुराकों में भी प्रभावी होते हैं, जैसे कि दिनचर्या में सुनना। नियमित जप से शरीर, मन और आत्मा के संतुलन में सुधार होता है।

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