१. सप्तम भाव (7th House) और उसका स्वामी
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सप्तम भाव विवाह और जीवनसाथी का प्रतिनिधित्व करता है।
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यदि सप्तम भाव पर पाप ग्रहों (शनि, मंगल, राहु, केतु, सूर्य) की दृष्टि हो, या वहाँ ये ग्रह बैठे हों, तो वैवाहिक जीवन में बाधाएँ आती हैं।
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सप्तमेश (7th lord) यदि नीच राशि में हो, पापग्रहों से पीड़ित हो, या अस्त (combust) हो तो वैवाहिक असफलता की संभावना बढ़ती है।
२. शुक्र (Venus) की स्थिति
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शुक्र विवाह का कारक ग्रह है।
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यदि शुक्र नीच राशि में हो, राहु-केतु या शनि-मंगल से पीड़ित हो, या छठे, आठवें, बारहवें भाव में स्थित हो तो दाम्पत्य सुख में बाधा आती है।
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शुक्र और मंगल में कठोर दृष्टि/युति होने पर दाम्पत्य जीवन में विवाद और अस्थिरता आ सकती है।
३. मंगल दोष (Kuja Dosha / Manglik Effect)
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यदि मंगल सप्तम, अष्टम, द्वादश, चतुर्थ या द्वितीय भाव में हो तो “मंगलिक दोष” बनता है।
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यह दोष पति-पत्नी के बीच आक्रामकता, झगड़े और कभी-कभी तलाक का कारण बन सकता है।
४. शनि और राहु-केतु का प्रभाव
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शनि विवाह में विलंब, दूरी और मानसिक अलगाव लाता है।
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राहु-केतु अस्थिरता और अप्रत्याशित घटनाएँ पैदा करते हैं।
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सप्तम भाव या सप्तमेश पर राहु-केतु की दृष्टि या युति होने से अचानक अलगाव या तलाक का संकेत मिल सकता है।
५. नवांश कुण्डली (Navamsa / D-9 Chart)
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विवाह और जीवनसाथी की गहन स्थिति नवांश कुण्डली से देखी जाती है।
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यदि नवांश का सप्तम भाव या उसका स्वामी पापग्रहों से पीड़ित हो, शुक्र/लग्नेश कमजोर हो, तो वैवाहिक जीवन असफल हो सकता है।
६. दशा और गोचर (Dasha & Transit)
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वैवाहिक असफलता अक्सर तब प्रकट होती है जब ग्रह दशाएँ (Mahadasha/Antardasha) सप्तम भाव, सप्तमेश या शुक्र को प्रभावित करती हैं।
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उदाहरण: राहु महादशा में यदि सप्तम भाव पीड़ित हो तो तलाक या अलगाव की संभावना रहती है।
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गोचर (Transit) में शनि या राहु का सप्तम भाव/सप्तमेश पर प्रभाव भी तलाक की घटनाओं से जुड़ा पाया गया है।
७. अन्य संकेत
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चन्द्रमा (Moon): मानसिक संतुलन और भावनात्मक जुड़ाव। चन्द्रमा यदि शनि/राहु/केतु से पीड़ित हो तो मानसिक असंतोष से अलगाव हो सकता है।
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बुध (Mercury): संचार (communication)। यदि बुध कमजोर हो तो आपसी संवाद की कमी और गलतफहमी रिश्ते को तोड़ सकती है।
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सूर्य (Sun): अहंकार और “स्वत्व” का कारक। सूर्य सप्तम भाव को प्रभावित करे तो “ईगो क्लैश” से विवाह टूट सकता है।
बृहत्पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार (BPHS References)
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सप्तम भाव अथवा सप्तमेश पर पापग्रहों की दृष्टि/युति → दाम्पत्य कष्ट।
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शुक्र पापग्रहों से पीड़ित हो या पाप स्थानों (6, 8, 12) में हो → विवाह में अशांति।
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शनि, मंगल, राहु, केतु सप्तम भाव में हों → विवाह में देरी, कलह, अथवा अलगाव।
नोट:
ज्योतिष केवल संभावनाएँ बताता है, निश्चितता नहीं। असल परिणाम व्यक्ति की कुंडली के संपूर्ण अध्ययन, उसके दशा-गोचर और व्यक्तिगत कर्मों पर निर्भर करता है।
केस-स्टडी: तलाक के योग वाली एक उदाहरण कुण्डली
जन्म विवरण (काल्पनिक):
- जन्म तिथि: 15 अगस्त 1985
- जन्म समय: सुबह 07:30 बजे
- जन्म स्थान: दिल्ली
लग्न कुण्डली (Main Chart Analysis)
- लग्न (Ascendant): सिंह (Leo)
- सप्तम भाव (7th house): कुंभ (Aquarius) राशि
- सप्तमेश (7th Lord): शनि (Saturn)
मुख्य योग
- सप्तम भाव में राहु स्थित → वैवाहिक जीवन में भ्रम, अस्थिरता और अचानक समस्याएँ।
- सप्तमेश शनि अष्टम भाव (8th house) में मंगल के साथ युति → पति-पत्नी में झगड़े, अविश्वास और मानसिक तनाव।
- शुक्र (कारक ग्रह) छठे भाव (विरोध और विवाद का घर) में स्थित और शनि की दृष्टि में → प्रेम और सामंजस्य में कमी।
- चन्द्रमा द्वादश भाव (विदेश/अलगाव का भाव) में राहु की दृष्टि से पीड़ित → मानसिक संतोष नहीं।
नवांश कुण्डली (D-9 Chart Analysis)
- नवांश में सप्तम भाव पर केतु → अलगाव की प्रवृत्ति।
- नवांश शुक्र नीच राशि (कन्या) में और पापग्रहों से घिरा → विवाह टिकाऊ न होना।
दशा-गोचर (Dasha & Transit)
- विवाह हुआ शुक्र महादशा – राहु अंतर्दशा में (2010)।
- लेकिन 2016 में शनि महादशा शुरू होते ही दांपत्य जीवन में दरारें आईं।
- 2018 में शनि-राहु अवधि में कोर्ट केस हुआ और 2019 में तलाक हो गया।
संकेतों का सारांश
- सप्तम भाव और सप्तमेश पापग्रहों से पीड़ित।
- शुक्र (विवाह कारक) नीच और छठे भाव में।
- राहु-केतु का सीधा असर।
- नवांश में सप्तम भाव और शुक्र दोनों ही कमजोर।
- दशा-गोचर में शनि और राहु ने तलाक को सक्रिय किया।
इस तरह की केस-स्टडी से समझ आता है कि तलाक कभी एक ही योग से नहीं होता, बल्कि कई ग्रहों के संयुक्त प्रभाव और सही समय (दशा-गोचर) में ही घटित होता है।